पुत्र की समृति में "हर सहाय जगदम्बा सहाय" ट्रस्ट की स्थापना से बाल -बालिकाओ की लघु संस्था को हाईस्कूल कक्षा तक सन १९४२ में स्थायी मान्यता मिल गयी | मुंशी जी की सतत चेष्टा से कुछ ही समय में कानपुर नगर का यह एक प्रतिष्ठित विद्यालय बन गया इसी दौरान मुंशी जी को अपनी पुत्री का एक अति उत्साही नाती विरासत में मिल गया और जिसने नाना को भरपूर सहायता दी और ट्रस्ट का १९४४ में एक एक समर्पित सदस्य बन गया और आज का सदस्य से लेकर सचिव जैसे विभिन्न पदो पर रहकर विद्यालय को १९५५ में इण्टरमीडिएट , १९७२ में महाविद्यालय स्तर तक उच्चीकृत कर आगे लाया । यही नवयुवक जिसे डॉ ० कैलाश चन्द्र कहते हैं , आज भी ९२ वर्ष की आयु में पुरे साहस , लगन एवं रूचि के साथ महाविद्यालय की सेवा में लगा हुआ हैं | इलाहाबाद नगर में चिकित्सा क्षेत्र में अपना नाम स्थापित कर पिता की ख्याति को अक्षुण बनाते हुए कानपुर में नाना द्वारा संस्थापित संस्था की देख -रखे करना तथा उसे निरन्तर विगत ६५ वर्षो से प्रगति की ओर उन्मुख रखना एक व्यक्क्ति के लिए कम सराहनीये कार्य नहीं हैं । शिक्षा के क्षेत्र में डॉ ० के ० सी ० दरबारी के अनवरत प्रयास से यह संस्था क्रमोत्तर आगे ही बढ़ती गयी और नगरवासियों, अभिभावकों और छात्रों की मांग पर हर सहाय जगदम्बा सहाय ट्रस्ट की खाली जगह पर निर्माण कराकर कानपुर विश्वविद्यालय से बी ० काम स्तर की मान्यता सन १९७२ में प्राप्त की । न्यास अपने न्यून श्रोतो से महाविद्यालय के विस्तार में निरन्तर लगा रहा और फलस्वरूप सन १९९७-९८ में एम ० काम ० कक्षाओ के संचालन की मान्यता प्राप्त कर परास्नातक महाविद्यालय बन गया | न्यास को अब विज्ञान संकाय में मान्यता लेने की आवश्यकता प्रतीत हुई और परिणाम स्वरुप १९९९ -२००० में गणित तथा जीव विज्ञान में मान्यता प्राप्त का ली गयी | यह समय था , कम्प्यूटर का और देश में कम्प्यूटर की क्रान्ति आ गई थी । न्यास ने रोजगार परक शिक्षा के उद्देश से कम्प्यूटर अप्लीकेशन तथा ऑफिश मैनेजमेंट की शिक्षा हेतु स्थानीय विश्वविद्यालय मान्यता प्राप्त कर ली । संस्था के इतिहास में २००८-०९ एक स्वर्णिम युग में प्रकट हुआ । सचिव डॉ० कैलाश चन्द्र दरबारी के नेतृत्व में न्यास के पदाधिकारियों के सहयोग से बी० एड० कक्षाओ के संचालन की मान्यता मिल गई जिसे दिनाक ३०-१२-०८ को स्थाई कर दिया गया । महाविद्यालय के गौरवमयी इतिहास की गाथा पूरी नहीं होगी यदि स्वं हरसहाय जी के दामादों एवं पुत्रियों श्रीमती विद्यावती तथा श्रीमती गुणवती ने अपने पूज्य पिता जी के आग्रह को आदरपूर्वक स्वीकार का कर शिक्षा जगत में लगा देने का अनुग्रह न किया होता | अब भी उन देवियो के परिवार तथा अनेक कर्मवीर ने घोर परिश्रम कर संस्था को वर्तमान स्वरुप देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया । इसमें स्मरणीय हैं , सर्वश्री पी० एन० दरबारी रुद्रा दरबारी , परिपूणानन्द` जी जगमोहन लाल , डॉ० एस० सराय , गणपत राय सक्सेना , राम सूरत लाल , मणिकांत श्रीवास्तव आदि |